कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥ प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला ॥ जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥ थोड़ा जल स्वयं पी लें और मिश्री प्रसाद के रूप में बांट दें। अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी https://shivchalisas.com