“मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना तन्हाई में बैठकर दर्द को अपनी क़लम से लिखता हूँ, हजारों लोग हैं मगर कोई उस जैसा नहीं है। मियाँ ये आशिक़ी इज़्ज़त बिगाड़ देती है…” कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे मेरा कौन है ये सोचने में https://youtu.be/Lug0ffByUck